Wednesday, 25 February 2015

भूमि अधिग्रहण 2015

पांच सितंबर को संसद ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास, पुनस्र्थापना में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार बिल पर मुहर लगा दी। भूमि अधिग्रहण बिल की अवधारणा को साकार होने में दो वर्ष का समय लगा। इन दो वर्षो में देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग समूहों ने इस बिल में जो दिलचस्पी दिखाई उससे स्पष्ट हो जाता है कि यह बिल एक ऐतिहासिक बिल है। यह संप्रग सरकार द्वारा जनता को अधिकारों से लैस करने के कानूनों की दिशा में पांचवां मील का पत्थर है। इससे पहले सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, खाद्य सुरक्षा अधिकार और वन अधिकार को लेकर कानून बनाए जा चुके हैं। इन बिलों का उद्देश्य आम आदमी का सशक्तीकरण और हाशिये पर सिमटे समुदायों के अधिकारों की रक्षा है। हालांकि जैसा कि किसी भी अच्छे कानून के मामले में होता है, नागरिक समाज के कुछ समूहों और कुछ औद्योगिक व कारपोरेट गुरुओं ने इस कानून पर भी हमला बोला है। मेरे ख्याल से, यह आलोचना अपने आपमें इस तथ्य की पुष्टि करती है कि हमने एक अच्छा कानून तैयार किया है। एक ऐसा कानून जो किसी खास समूह के हित न साधता हो, बल्कि टिकाऊ विकास के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध है।

पिछले सप्ताह मुङो दैनिक जागरण टीम के साथ नए भूमि अधिग्रहण बिल पर चर्चा करने का मौका मिला। मैं इस अपेक्षा से जागरण कार्यालय गया था कि जागरण टीम इस कानून की ‘वामपंथी’ प्रकृति के आरोप में मुझ पर चढ़ाई कर देगी। जागरण हमारी हालिया पहलों का बड़ा प्रशंसक नहीं रहा है और मैं मान रहा था कि इस प्रयास को भी कुछ संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा होगा। मैं तब हैरान रह गया जब जागरण संपादक मंडल ने सराहना की कि हमने एक ऐसा मसौदा तैयार किया है जो विभिन्न प्रतिस्पर्धी हितों के क्षेत्र में संतुलन कायम करता है। मुङो सुखद आश्चर्य हुआ। असल में, यह नया कानून तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था और उन विविध सामाजिक संरचनाओं के बीच एक समझौता है, जिन्हें संवेदनशीलता के साथ समङो जाने की जरूरत है। यही वह भावना है जिसके साथ हमें इस कानून को लागू करने के लिए काम करना है। यह ऐसा कानून नहीं है, जो किसी भी क्षेत्र के खिलाफ लक्षित है। यह कानून महज किसानों या आदिवासियों के ही पक्ष में नहीं है। दरअसल, यह कानून जनवादी है। 1इस कानून को सही ढंग से समझने के लिए इसे एक बीमा पॉलिसी के रूप में देखना चाहिए। यह कानून जबरन अधिग्रहण के खिलाफ गारंटी है। यह बिल वायदा है कि स्वतंत्र भारत के पिछले छह दशकों के विपरीत अब किसी भी परिवार का उसकी इच्छा के खिलाफ उसकी भूमि से विस्थापन नहीं होगा। हम अनुचित अधिग्रहण को सरल बनाने के लिए किसी गरीब और वंचित व्यक्ति के अधिकारों की बलि नहीं चढ़ा सकते। मुङो पूरा विश्वास है कि कोई भी ऐसा नहीं चाहता। समाचार पत्रों में मुआवजे, पुनर्वास और पुनस्र्थापना संबंधी प्रावधानों पर काफी चर्चा हुई है। मैं दो और महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहूंगा। इसके साथ ही कलेक्टर की भूमिका और अपील के तंत्र पर भी प्रकाश डालना चाहूंगा।