Sunday, 21 September 2014

हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा होती है। But हिंदी वनवासिनी है... Ananya Mishra

हर देश की अपनी राष्ट्रभाषा होती है।
सारा सरकारी तथा अर्ध - सरकारी काम
उसी भाषा में किया जाता है।
वही शिक्षा का माध्यम भी है। कोई भी देश
अपनी राष्ट्रभाषा के माध्यम से ही विकास पथ
पर अग्रसर होता है। संसार के सभी देशों ने
अपने देश की भाषा के माध्यम से
ही अनेकों आविष्कार किए हैं। लेकिन
विडबंना देखिए की हिन्दी आज़ादी के 63 साल
गुजर जाने के पश्चात भी अपना सम्मानजनक
स्थान नहीं पा सकी है। आज़ादी के समय
हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रुप में स्थापित करने के
प्रयास का भरसक विरोध किया गया और तर्क
दिया गया कि इससे प्रांतीय भाषाएँ पिछड़
जाएँगी। अनुच्छेद 343 में लिखा गया है - संघ
की राजभाषा हिन्दी होगी और
लिपि देवनागरी होगी परन्तु बाद में इसके साथ
जोड़ दिया गया कि संविधान के लागू होने के
समय से15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन
प्रयोजनों के लिए अंग्रेज़ी का प्रयोग
होता रहेगा। इस तरह हिंदी को 15 वर्ष
का वनवास मिल गया। इस पर भी पंडित
जवाहरलाल नेहरु ने 1963 में संशोधन कर
दिया कि जब तक एक भी राज्य हिंदी का विरोध
करेगा , हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं होगी। हिंदी के
सच्चे सेवकों ने इसका विरोध भी किया। कुछ
समय बाद प्रांतीय भाषाओं में विवाद
खड़ा हो गया। उत्तर और दक्षिण में
हिंदी का विरोध हुआ और इन दो पाटों में
हिंदी पिसने लगी। आज भी हिंदी वनवासिनी है।

The Word Dharm By Ananya Mishra

The word dharm means the religious practices and thoughts that are aimed to fulfill a pious
goal in life. Accordingly the apar or varnashram dharm is the religious discipline and
injunctions of do’s and don’ts that are explained in the scriptures for uplifting the sattvic
qualities of a human being in general. Varnashram word refers to all kinds and classes of
people of this world living various orders of life (like a family man, a priest, a monk or a
sanyasi), and apar word means ‘secondary’ or ‘general’ or ‘preliminary’ because it is not the
absolute or prime dharm, it is the preliminary dharm for everyone in the world.
The discipline and rules of apar dharm vary according to the state of the spiritual
consciousness of a person, and its rigidness also varies from age to age, that is, from satyug to
kaliyug. In short you can understand that (for the existing age) all kinds of good deeds and
philanthropic works that are beneficial to the society, and sincere observance of the
religious discipline of the ‘order of life’ (religious student, family man, or a renounced
person) you are following, come in this category, provided, that they are done with sattvic
motivation. Sattvic motivation means having faith in God and then doing all the good karmas
only to please God and not for any kind of personal gain. Even if you think of receiving
compliments for your good karmas or the religious practices which you observe, it will not be
classified as sattvic , it will become rajas , because you desired for the compliments and you
have received them. Thus you have already availed the outcome of your so-called good deeds.

Wednesday, 10 September 2014

Villages are the cultural and economic foundation of this country: Ananya Mishra

Villages are the cultural and economic foundation of this country: 

It is the villages that from the basis of the cultural and economic life of the country. Real Indian society still loves in the villages. Indian culture is still preserved there. The real value of the Indian life can be seen only in the villages. Through the study of these villages, the real conditions of the country’s life can be seen only in the villages.Through the study of these villages the real conditions of the country’s life can be known apart from it they are the economic base of the country. Agriculture which is the basis of Indian economy is practiced largely in the village. About 70% of the Indian population still depends on the agriculture. Indian society has therefore to take into account this fact of it wants to go ahead.

Friday, 5 September 2014

गुरु मोदी' की पाठशाला

1. डिग्री के साथ हुनर जरूरी
रोजगार की समस्या को दूर करने के उपाय से संबंधित सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे पास डिग्री के साथ-साथ हुनर का होना जरूरी है। बहुत से बच्चे कई वजहों से सातवीं, दसवीं, बारहवीं तक पढ़ाई कर पाते हैं। अगर उन्हें हुनर सिखाया जाए तो बेरोजगारी की समस्या दूर हो सकती है। उन्होंने कहा कि जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था तब आणंद में नेनो कार प्लांट लगाने की तैयारी चल रही थी। मैंने प्रबंधन से आसपास के क्षेत्रों के बच्चों के लिए आइटीआइ में ऑटोमोबाइल का कोर्स शुरू करने को कहा और जब तक प्लांट तैयार हुआ कई बच्चे कार निर्माण के हुनर में माहिर हो गए। उन्हें उसी प्लांट में रोजगार मिल गया। मोदी ने कहा कि यदि हमारे बच्चे हुनरमंद होंगे तो देश की अर्थव्यस्था अपने आप सुधर जाएगी।
2. हर स्कूल में लड़कियों के टॉयलेट
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि स्कूलों में ड्रॉपआउट कम करने के लिए हर स्कूल में लड़के व लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट होना जरूरी है। हम अक्सर देखते हैं कि पांचवीं, सातवीं कक्षा तक बच्चियां पढ़ते-पढ़ते स्कूल छोड़ देती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह होती है स्कूल में उनके लिए अलग टॉयलेट का अभाव। इसके लिए गंभीर प्रयास शुरू किए गए हैं। प्रधानमंत्री ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि एक बालक के पढ़ने से एक व्यक्ति शिक्षित होता है जबकि एक बालिका के शिक्षित होने से दो परिवार (मायका व ससुराल) शिक्षित होते हैं।
3. स्कूलों में साफ-सफाई पर जोर
मोदी ने साफ-सफाई के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्कूलों में इसका खास ख्याल रखा जाना चाहिए। और इसके लिए छात्र और शिक्षक मिलकर काम करें।
4. बिजली बचाकर देशसेवा
मोदी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि हम डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनकर देशसेवा कर सकते हैं बल्कि छोटे-छोटे उपायों से भी हम देशसेवा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि बिजली बचाना भी देशसेवा से कम नहीं है। बच्चे घर में अपने माता-पिता से बिजली बिल को कैसे कम किया जाए इस पर जरूर चर्चा करें। हम अनावश्यक चल रहे पंखे, बल्ब को तुरंत बंद करें। कम से कम से पूर्णिमा के दिन चांदनी रात में दो घंटे घर की बिजली बंद कर बड़ा योगदान दे सकते हैं। इससे पर्यावरण को बचाने में भी मदद मिलेगी।
5. पर्यावरण संरक्षण पर जोरमोदी ने बच्चों को पर्यावरण संरक्षण की सीख देते हुए कहा कि मौसम नहीं बदला है, बल्कि हमारी आदतें बदल गई हैं। इसे ठीक करना होगा। हमें प्रकृति से प्रेम करना सीखना होगा। पहले मां हमें बताया करती थी कि चांद हमारे मामा, सूरज हमारे दादा, नदियां हमारी मां हैं लेकिन आज वह शिक्षा बच्चों को नहीं मिल रही है। हमें फिर से उस ओर लौटना होगा।
6. डिजिटल इंडिया का सपनामोदी ने छात्रों से कहा कि हमारा सपना डिजिटल इंडिया का है। आज सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में छात्रों को तकनीक से दूर रखना गुनाह है। हमारे युवा बहुत प्रतिभाशाली हैं। बस इन्हें रास्ता दिखाने की जरूरत है।
7. किताबें पढ़ने की आदत डालें
मोदी ने बच्चों को किताबें पढ़ने की आदत डालने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि बच्चे वैसे सफल लोगों की जीवनी पढ़ें जिन्होंने देश और समाज के लिए कुछ बड़ा किया है। उन्होंने कहा कि आजकल हर काम गूगल गुरु द्वारा होता है, लेकिन इससे जानकारी मिलती है ज्ञान नहीं।
8. शिक्षक-छात्र के बीच हो आजीवन संबंध
प्रधानमंत्री मोदी ने छात्रों और शिक्षकों के गहरे संबंधों पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि अक्सर ऐसा होता है कि दोनों पढ़ने और पढ़ाने के बाद एक-दूसरे को भूल जाते हैं। मोदी ने कहा कि शिक्षक-छात्र के बीच का संबंध आजीवन रहना चाहिए। छात्र समय-समय पर अपने शिक्षक से अवश्य मार्गदर्शन लेते रहें।
9. सपना कुछ करने का हो
मोदी ने कहा कि हमारा सपना कुछ बनने का नहीं, बल्कि कुछ करने का होना चाहिए। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं प्रधानमंत्री बनूंगा। लेकिन देश के लिए कुछ करने की आकांक्षा जरूर थी। एक राजनेता ही नहीं, एक अच्छा छात्र बनकर भी देशसेवा की जा सकती है। एक बच्चे के प्रश्न के जवाब में कि प्रधानमंत्री बनने के लिए क्या जरूरी है, मोदी ने हंसते हुए बच्चे से कहा कि 2024 के चुनाव की तैयारी करो। यदि तुम प्रधानमंत्री बने तो अपने शपथ ग्रहण मुझे जरूर बुलाना।
10. अंदर के बचपन को जिंदा रखें
प्रधानमंत्री ने अपने अंदर बचपन को बचाए रखने पर जोर देते हुए कहा कि हम अपने भीतर के बालक को जिंदा रखें ताकि हंसते-खेलते हर बाधाओं को पार पाने में सक्षम हों। जैसे एक बालक गिरने से न डरकर चलने का प्रयास करता रहता है, उसी तरह हमें भी ऐसी सोच कायम रखने की जरूरत है।